लेखन संजय खरात ( भारतीय), नाशिक. लेखक भारतीय सिनेमा के ज्येष्ठ समीक्षक, लेखक और पटकथाकार है|
संडे स्पेशल दि.१३ नोव्हें. : मराठी फिल्म “गोदावरी” अभी रिलीज हुई है….मराठी फिल्म बेहतर कंटेंट के लिए जाना जाता है “गोदावरी” फ़िल्म भी एक ऐसे विषय को प्रस्तुत करती है जो कि आजतक भारतीय सिनेमा में नही आया है मानव और निसर्ग का एक अटूट सा रिश्ता होता है हर कोई अपने तरीके से इस रिश्ते को निभाते निभाते अंत मे खुद ही इस निसर्ग में विलीन हो जाता है….!!
जैसे कि जब एक ‘जीव’ इस पृथ्वी पर जन्म लेता है, तो उस “जीव” का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है कि वह किस योनि में जन्म लेगा। उस आत्मा के हाथ में न उसका जन्म है, न उसकी परिस्थितियाँ, न उसकी अपनी मृत्यु….!
यह सब होते हुए भी वह ‘जीव’ मनुष्य की योनि में जब पैदा होता है। तो फिर वह जन्म के समय कुछ (गर्भ) ‘संस्कार’ लेकर ही पैदा होता है, और अगर उसके आस-पास की स्थिति उसके लिए ‘अनुकूल’ नहीं होती है, तो वह “जीव” किसी को समझने की कोशिश भी नहीं करता है और उसके दिल में एक ठहरावसा बन जाता है …. भले ही उसके अंदर उठने वाले सवालों के जवाब उसके आसपास चारों ओर ही होते है, वह उसे अंत तक नही समझ पाता है। …. क्योंकि वह अपने पतित मन को बहने ही नहीं देता है, प्रवाहित नही होने देता है। एक नदी की तरह…”गोदावरी” जैसा..!!

विज्ञान कहता है कि मानव का शरीर लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा पानी है… इसलिए इसके पीछे का वैज्ञानिक दृष्टिकोन कितना भी अलग क्यों न हो, पर प्रत्येक व्यक्ति जैसे कि एक चलती फिरती ‘नदी’ जैसा प्रतीत होता है….लेकिन उस व्यक्ति का मन जब नदी जैसा बहने से इनकार कर देता है, थम सा जाता है प्रवाहित नही होता…तो उसके मन की उस अवस्था को ही शायद हम “दुःख” कहते है|
जितेंद्र जोशी द्वारा अभिनीत और निर्मित “गोदावरी” आपके दिमाग में कई सवाल उठाती है और साथ ही उनका जवाब भी आपको देती है …. हालांकि यह फ़िल्म कला का यह अविष्कार एक चित्रकार द्वारा खींची गई रहस्यमयी अमूर्त पेंटिंग की तरह है, यह आपको आपकी कहानी बताना शुरू कर देता है। इसमे खो जाओ आप खुद भी नहीं जान पाएंगे। स्क्रीन पर यह सब होने के साथ, निशिकांत की शुरुआती उलझन और बाद में उनके व्यक्तित्व में आते बदलाव उनके सवालों को अपने आप वह हल कर देता है … और हमें इस आनंदमय पर नश्वर जीवन की समृद्ध कहानी बताता है।
मैं मराठी फिल्म “गोदावरी” की कहानी के विवरण में नहीं जाना चाहता … क्योंकि यह एक ऐसा एहसास है जिसे उसे अपने तरीके से अनुभव करना चाहिए।
फिल्म “गोदावरी” को फिल्म की दृष्टि से दर्शको को प्रस्तुत करने में सभी ने बहुत मेहनत की है। जितेंद्र जोशी “निशिकांत” को जीवन में उतारने में इस कदर कामयाब हुए हैं कि यह उनके जीवन का सबसे अच्छा परफॉर्मेंस कहा जा सकता है। हिंदी के दर्शक उन्हें हिंदी वेबसरिज “सेक्रेड गेम्स” में काटेकर के रुप मे देख चुके है उनके काम को बहोत प्रशंसा भी मिली हुई है…. इस फ़िल्म में खासकर मराठी फिल्मों के जेष्ठ अभिनेता संजय मोने द्वारा की गई एक्टिंग में डायलॉग्स बहुत कम हैं, लेकिन उन्होंने अपनी बोलती आंखों से जो कहा है वो बखूबी आप तक पहुचता है. गौरी नलावडे ने भी बहुत अच्छी एक्टिंग की है…और जेष्ठ अभिनेता विक्रम गोखले की एक्टिंग के बारे में लिखने की योग्यता मुझमें नहीं है लेकिन बस इतना ही है कि सब कुछ एक साथ खूबसूरती से आया है…बड़े पर्दे पर जाकर देखना चाहिए…!!
निखिल महाजन का निर्देशन हमेशा की तरह लाजवाब है…..खासकर लेखन में प्रजाक्त देशमुख ने हर किरदार में जान डाल दी है । “गोदावरी” में प्रियदर्शन जाधव का किरदार “कासव” भी दिल को छू लेने वाला है…सरिता के प्यारे किरदार ने मासूमियत को पर्दे पर जिंदा कर दिया है…कुल मिलाकर आपको कम से कम एक बार “गोदावरी” फिल्म जरूर देखनी चाहिए.. .क्योंकि, ऐसी फिल्म से आपको कुछ खोया हुआ आपको मिलने की प्रबल संभावना होती है।
इस फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए “गोदावरी” फ़िल्म के पूरी टीम का मनःपूर्वक धन्यवाद !!